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Thursday, April 8, 2010

हाँ मैं पगली हूँ

अब क्या लिखेगी ये पगली


गीत मेरे वो ले गया


मौन मुझे दे गया


चाहा था उसको पुकारूँ


पुकारा भी


मुखर थे मेरे शब्द


पर वो ना सुन सका


ना सुन सका?


नहीं, उसने सुना नहीं


सुनकर भी नहीं सुना


गुनकर भी नहीं गुना


देखा मेरा पागलपन


देखा मेरा पागलपन उसने भी


उसने भी औरों के संग


कहा मुझको बेचारी


बेचारी को दुआ दो


बेचारी को दवा दो


दवा


दवा जो था मेरा


विष भरकर चला गया


चला गया


कहने जग को


उसने भी था प्यार किया


उसने जो था मेरा प्यार,


उसने भी था प्यार किया


पर चल बसी


चल बसा उसका प्यार


उसका प्यार


मैं


मैं चल बसी


मैं जो उसकी थी


मैं जो उसके प्यार की लाश हूँ


जीवित लाश हूँ


उसकी बेवफाई की


लहू सूख गया है मेरा


पर देखो गौर से


गौर से देखो उसका दामन


छींटे हैं मेरे लहू के


मेरा लहू है


तिलक उसके माथे का


जिसे उसने सजाया है


मेरे न होने की दुहाई दी है


और यूं सबका स्नेह पाया है


मैं जिन्दा हूँ


जिन्दा हूँ मैं पर


मुझको प्रतिमा बनाया है


मुझपर हार चढाया है


शिव के रात्रि की थी वो अमावस


जिसे उसने पूनम बनाया था


आज मुझे अमावस बनाया है


मेरे आगे दीप जलाया है


वादों के देवता बने हैं


मुझे जीतेजी ठुकराया है


दूर से देखूं


दूर से देखूं हूँ मैं पगली


उसके रोशन चेहरे को


वो जो साथ चले थे मेरे


वो जो थामे थे मेरा हाथ


छोड़ गए हैं मेरा हाथ


छोड़ गए हैं कम्पन


अधरों में, हाथों में


अब क्या गाएगी ये पगली


अब क्या लिखेगी ये पगली


हाँ हूँ मैं पगली


हाँ मैं पगली हूँ
9:04pm, 7/4/10

2 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

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  2. प्रीती जी ,
    नमस्कार

    आपका ब्लॉग देखा बहुत अच्छा लगा धीरे धीरे कविताएं और लेख पढूंगा
    शुभ कामना

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Thanks for giving your valuable time and constructive comments. I will be happy if you disclose who you are, Anonymous doesn't hold water.

आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.