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Friday, October 8, 2010

है पगली मुस्काई


है 
पगली 
मुस्काई 
लहर  सी
है
आई
वो खोली
पुरानी पाती
नाच
उठे हैं
उसके
लेख
मुस्कुरा  उठा
वो चेहरा 
सोचों में 
और 
लहर  सी 
लहरा गई 
मुस्कान
पगली के
ओठों में...
याद
गए
वो
मीठे पल
जब
मौन रहकर
भी
सबकुछ
कह दिया था
सांसो ने.
आज भी
वही  
मौन
पसरा है
पर
पगली को
होश कहाँ
वो
तो
जीती है
उस
कल में
जो
समाया है
उसके
आज में
वो
योगी की
यादें
वो
अनकही
बातें,
जो
आज भी,
लती है
सुन
ये पगली...
वो
योगी के
मुख से
सुन
"चंद्रिके"
कैसी
लहर
दौड़ जाती थी
मानस-देह में
आज भी
सुन लेती है
वो
अपना नाम
चंद्रिके
और
आज भी
महसूस
कर लेती  
है
वो भाव,
वो
सिहरन
और
रह जाती है
जड़
उस
अनुभूति से,
सुखद अनुभूति से
उसे
आत्मसात
करती....
रहती है स्थिर
कि 
कहीं
खो ना जाये
लहर
और....
कर
भान
अपना ये पागलपन
है
मुस्काई....
है पगली मुस्काई!!
10:45pm,

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