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Monday, October 11, 2010

'तुम्हे सुनना है'--पगली

तुम्हे सुनना है!
कितने मीठे
शब्द हैं
कर्णमार्ग
से मेरे
ह्रदय में
समा जाते
हैं
योगी
के
शब्द...
वो
स्वर,
जो
मधु सी
मिठास
लिए हैं,
जब,
भाव रस
से
परिपूर्ण
हो
मेरे
भावों को
छूते हैं,
तो,
वो
अपार
उल्लास
कैसे
मुखरित
करे,
ये पगली...
योगी तो
शब्दों से
कृपण
हो चले हैं....
जेठ की
तपती दुपहरिया में
यूँ ही
कोई
बदली
भटककर
जीवन नीर
बरसा दे
तो
तपती भूमि
और भी
सुलग उठती है
वैसे ही,
योगी,
ये शब्द
मेरी
आत्मा की तपन
को
बढ़ा देते हैं,
कितना भी
सुनूँ
पर
तृप्त
नहीं होती
ये
प्यास...
बस मौन
प्रतीक्षारत
रहती है
ये पगली
सुनने को
योगी के
स्वर...
कैसे
खिल उठता
है
मन उपवन
जब
आता है
संदेशा भर...
देखो तो
कैसे
रूप है दमका,
खिली है
मेरे
होठों पर
स्निग्ध
मुस्कान ...
हाँ!
पगली है
हर्षित...
आज,
फिर
योगी के
स्वर पड़े
कानों में
जब बैठी थी
प्रभु चौखट पर
कितना मीठा
स्वर है
योगी का...
और
उससे
मीठा
भाव
जिसे
पगलाया ह्रदय
बस
मन अनुरूप
ही
सुनता है
और
फिर
आज तो
योगी ने
कहा है
'तुम्हारा लिखा कुछ'
हाँ! मेरा लिखा
पगली का लिखा
इस
पगली का लिखा
सुनो
.
.
योगी ने कहा
भले इतना भर
पर
खुशियों से
मुझे भर दिया
जब कहा
इस
पगली को
'तुम्हे सुनना है'

10:18 p.m., 13/5/10

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