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Sunday, September 18, 2011

अधूरापन- 4 [मेरा अधूरापन]



हाँ  नहीं  दौड़  सकती  पकड़ने  तितली
चढ़  नहीं  सकती  पहाड़ी  पगडण्डी
नहीं  लगा  सकती  मैं  लम्बी  छलांगें
कूदकर  पकड़    सकूँ  तरु  की  ऊँची  बाहें

पर  समझ  सकती  हूँ  तुम्हारी  चाहतें
मेरी  लगन  दे  सकती  है  मन  को  राहतें
कठिन  लक्ष्यों  में  उमंग  भरा  दूँ  साथ
डगमगाते  क़दमों  को  विश्वास  भरा  हाथ

तुम्हारे  स्नेह  में  होता  है  छल
रिश्ते  तोड़ने  में  नहीं  गंवाते  पल
बता  देते  हो  छोटी-छोटी  कमी
स्वयं  पर  नजर    डालते  कभी

हाँ  है  चाल  तुम्हारी  सबल, सक्षम
पर  नहीं  मिला  पाते  मुझसे  कदम
तुम्हारे  व्यंग  तोड़ते  हैं  विश्वास
दृढ़ता  मेरी  भरती  है  विश्वास

कहो  मुझसे  कब  रुकता  है  जीवन?
सोचोतुमकहाँ  रोकते  हो  जीवन?
है  नहीं  क्या  सस्नेह  अपनापन?
क्या  सच  है  मुझमें  अधूरापन?


13 comments:

  1. ati sundar bahut pasand aai kavita.god bless you.

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  2. बहुत ही खुबसूरत कविता ....

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  3. बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त प्रस्तुति!

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  4. आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  5. बेहतरीन पेशकश ||
    शुक्रिया ||

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  6. बहुत ही खुबसूरत कविता ....

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  7. गहरा दर्द,
    गहरी पीड़ा छुपी है आपकी रचना में.

    इस दौर से बाहर निकलिए.

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  8. भावपूर्ण कविता के लिए बधाई..

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  9. कहो मुझसे कब रुकता है जीवन?
    सोचो, तुम, कहाँ रोकते हो जीवन?
    है नहीं क्या सस्नेह अपनापन?
    क्या सच है मुझमें अधूरापन?

    लाजबाब प्रस्तुति है आपकी.
    अधूरापन पर आपके भाव विलक्षण हैं.
    अनुपम अहसास कराते है.

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  10. गहरे जज्बातों को शब्द दे देती हैं आप .... बहुत लाजवाब
    कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 20 दिनों से ब्लॉग से दूर था
    देरी से पहुच पाया हूँ

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  11. Bahunt hi gahan abhivyakti.. Aaabhar

    Vishesh aabhar mere blog par apne bahumulya comments ke liye..

    Fir aaiyega..

    Dipawali ki thodi der se Hardik badhai....

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आपने अपना बहुमूल्य समय दिया एवं रचनात्मक टिप्पणी दी, इसके लिए हृदय से आभार.