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हृदय के उदगारों को शब्द रूप प्रदान करना शायद हृदय की ही आवश्यकता है.

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Monday, February 11, 2013

na bhaye ना भाए



दरवाजे  बंद  हुएउनके  दिल  के  झरोखों  में  नए  दिए  जल  गए
आंसुओं  से  भरी  पलकें  लिए  झिलमिलाती  रौशनी  देखते  रह  गए
12.11 am 1/2/2013



हमें  न  इश्क  भाता  है  न  ये  मौसम-ए-इश्क
ऐ  दिल  चल  दूर  विरानों  को  ठिकाना  बना  लें

 5.08pm, 9/2/2013


नहीं  मुमकिन  एक  सा  होना
माना  हर  पल, हर  किसी  के  लिए 
पर  चाहता  कौन  है  तुम  मिलो 
सबसे  वही  लगाव  वही  शिद्दत  लिए

5.35pm
9/2/2013

10 comments:

  1. भावो को शब्दों में उतार दिया आपने.................

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  2. "नहीं मुमकिन एक सा होना
    माना हर पल, हर किसी के लिए
    पर चाहता कौन है तुम मिलो
    सबसे वही लगाव वही शिद्दत लिए "

    क्या बात है ! वाह!

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  3. बहुत ही सुंदर भावों की प्रस्तुति.

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  4. मौसम के अनुकूल -
    सटीक अभिव्यक्ति |
    आभार आदरेया -

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  5. नहीं मुमकिन एक सा होना
    माना हर पल, हर किसी के लिए
    पर चाहता कौन है तुम मिलो
    सबसे वही लगाव वही शिद्दत लिए
    bahut sundar

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  6. सभी एक से बढ़कर एक. बहुत प्यारा भाव...

    नहीं मुमकिन एक सा होना
    माना हर पल, हर किसी के लिए
    पर चाहता कौन है तुम मिलो
    सबसे वही लगाव वही शिद्दत लिए

    शुभकामनाएँ प्रीती.

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  7. सुंदर भाव।
    फुर्सत मिले तो शब्दों की मुस्कुराहट आने वाले दिनों में पर ज़रूर आईये !

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