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Monday, January 27, 2014

mere mitra-2 ....मेरे मितरा-2


वो  दिया  जो  प्रज्ज्वलित  हुआ  मन  में
धुंआ  धुंआ  सा  क्यूँ  कर  भर  गया  मुझमें

2.56pm, 27 jan 14


मेरे मितरा

बड़ी  जिद्दी  हो  आखिर  क्या  हासिल  इस  चुप्पी  से
बहुत  दिन  हुए  छोडो  ना  नाराजगी, कहा उसने 
सच  कहा,  कुछ  हासिल  नही,  इस  चुप्पी  से
सिवा  तड़प  के, आंसू  के,  इस  जुदाई  की  पीड़ा  के

मैं  क्या  करूँ पर,  तुम्ही  कहो 
संग  मेरे  होकर  भी  भटकते  हो
गैरों  की  राह  दिन  रैन  तकते  हो
करीब  ला  कर  बेदर्दी  से   झटकते  हो  

कहते  हो  ना  करूँ  शिकायत मैं
पींग  भरो  जब  तुम  वहाँ  झूलों  में
कि  तब  लौट  आओगे  तुम  पास  मेरे
पर  कहो  क्यूँ  है  ये  लगते  फेरे  तुम्हारे  
जब  मैं  हूँ  दिल  के  इतने  करीब  तुम्हारे


कहते  होतुम  हमारे, हम  तेरे
फिर  क्यूँ  चाहते  हो,  रहे,  गैर  घेरे
देते  हैं  दर्द,  भरते  हैं  अग्नि  मेरे  दिल  में
करते  हो  यूँ  दूर  और  ना  रह  सकूँ  दूर  मैं

कहा  तुमने  मुझे  ना  कहना  क्या  कर  दिया
तुम ही  कहो  ना  मुझसे  तुमने  क्या  ना  किया
मैं  चुप  रही,  पर,  आँखों  ने  पढ़  लिया
जानते  हो  दिखा  जो, दिल  पर  क्या  किया

और क्या  चाहूंगी  मितरा  तुमसे  मैं
एक  तेरी  चाह  के  सिवा  और  क्या  है
तुमसे  दूर  या  करीब  आंसू  मिलते  हैं
तुम  ही  कहो  अब  करूँ  क्या  मितरा  मैं
ना  जी  सकूँ  ऐसे  और  जीना  भी  चाहूँ  मैं
4.14pm 24 jan 14

3 comments:

  1. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...

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  2. तुम ही कहो अब करूँ क्या मितरा मैं
    ना जी सकूँ ऐसे और जीना भी चाहूँ मैं
    सुंदर भाव और सुंदर शब्दों से सजी रचना है …
    बहुत खूबसूरत !

    ReplyDelete

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